सच ही जाने

सच ही जाने सच क्या है झूठ तो बदलते रहता है,

लाख़ मिला लो हाथ उनसे दिल धड़कते रहता है!

रोशन कर लो घर अपना जब चाहे चिराग़ जला दो,

ख़ामोशी में बीन बरसात ही बादल बरसते रहता है!

ख़ुब बदल लो शक़्ल अपनी आईना सच कहता है,

शीशा ए दिल शीशे में ख़ुद दिल बहलातें रहता है!

सब कुछ तो ख़ुदा जाने बाकी तुम हम किरदार हैं,

चाँद हँसता है छुप छुप कर परदा सरकते रहता है!

मुझको अब यकिन हुआ है के यह ख़याल अच्छा हैं,

बहते हुए पानी में ख़ुद ब ख़ुद पत्थर बदलते रहता है!

झ़ील

ग़ज़ल

कौन जाने कौन कहाँ से,

एक रंग हैं सब जुबाँ से!

आयें थे सब दोस्त बनाने,

जख़्म देखा हुये खफ़ाँ से!

मुश्किल है पर ग़म नहीं है,

जिस दिन जायेंगे जहाँ से!

उनका कोई पैगाम नहीं है,

सारे ख़्वाब धुवाँ धुवाँ से!

दैर ओ हरम में उनकों सुनते हैं,

समझते हैं जो इन्सान ख़ुदा से!

आँख़ ए ऊदू झ़ील पें जैसे,

जमीन पे ठहरे हुए चाँद से!

क्या देश क्या भेद यारों,

यह हक़िक़ते बयाँ बयाँ से!

एक एक सब मिट जायेंगे,

नामों निशान मेरे यहाँ से!

जिसने दिल पे तिर चलाया,

लौट कर वह गया वहाँ से!

यूँ समझ लो आईना हो तुम,

शीशा फ़िर लगता है छाँव से!

दर्द़ का क्या है चलता रहेगा,

गुजरती है ख़ुशबू जैसे हवाँ से!

बेसबब हाल पूछता है हर कोई,

नया नया सा लगता है गाँव से!

धूप सहरा ख़ामोशी हर तरफ़,

इश्क़ दा ईनाम मिला है दुवाँ से!

झ़ील

कुछ तो बात है

कुछ दिन पहले की बात है, खामोशी की रात हैं,

हम दोनों मगर इस दुनिया से निजात हैं!

एक कहानी बन जाती है, ख़ुद पगली सी रहती हैं,

एक दूजे के वास्ते यह किरदार दोहात हैं!

सारा शहर है मतलबपरस्ती, कौन आया गया क्या,

मोहब्बत ए सराब़ ख़ुद ही में सौग़ात है!

हमने जिनका ज़िक्र किया, बस वह जुबाँ पें रहता हैं,

मीट गयें मिटने वाले हिर रांझा आबाद हैं!

बहोत हँसीन है यह दुनिया, तुम भी जीना सीख़ लो,

एक ख़ुदा हैं फ़िर भी ग़म हैं खुशियों पें आघात हैं!

सबको हैं रब़ दा वास्ता, नेकी कर दरिया में डाल दो,

दुश्मन हैं ख़ुदग़र्ज़ हैं जो इन्सान आज़ाद हैं!

सोच समझ के रखना क़दम, यह फिसलता रहता है,

जो करता है मोहब्बत वह तुझसे नाराज़ हैं!

झ़ील

जिंदगी ए जिंदगी

तुम अपना वास्ता जमीन से रखना सीख लो,

तुम अपना रास्ता खुद ही बनाना सीख लो!

हर शहर हर तरफ़ यहाँ रकीबों से है भरा,

दुश्मनों को अपना दोस्त बनाना सीख लो!

जिंदगी ए जिंदगी नाराज़ ना होना कभी मुझ पर,

ग़म ए दस्तूर है ए जिंदगी गले लगाना सीख लो!

मुक़ाबले में कभी हार कभी जीत हैं ए झ़ील,

तुम अपना हर आँसू आँखों में छुपाना सीख लो!

हमने माना हैं यह के जिंदगी धूप हैं लेकिन,

रात की ख़ामोशी यों को छाँव समझना सीख लो!

जो भी आया हैं जहाँ में भीतर से जूझ़ रहा है,

हर एक ग़म पे तुम सुकून से मरना सीख लो!

बिग़ड़ गया क्या उनका जिनका बिग़ड़ गया है,

बार बार गिर के जमीन पें सँभलना सीख लो!

कोई होता नहीं किसी का सारे रिश्ते ही झूठे हैं,

ग़म ए दिल से रिश्ता ख़ुद निभाना सीख लो!

जख़्म ए दिल हमेशा समंदर से भी बड़ा रखना,

दर्द़ छुपा कर पानी की तरह बहना सीख लो!

याद करना मुझको जब भी वक्त़ मिलेगा जरूर,

आऊँगा नहीं लौट कर सितारों में ढूँढना सीख लो!

झ़ील

कभी याद किया उसने

कभी याद कर के मुझको आँखों में सजाया उसने,

कभी दोस्तों में रकीबों से हाथ मिलाया उसने!

कभी आशार मेरा औरों को पढ़ कर सुनाया उसने,

कभी किताब ए पन्ना शोलों से जलाया उसने!

कभी ख़ामोश जगह चाँद बन कर बुलाया उसने,

कभी सितारों में चलतें चलतें सताया उसने!

कभी औरों की तरह मुझको भी समझाया उसने,

कभी मचलती हुई बरसात में भिगोया उसने!

कभी कर दिया परदा कभी गले से लगाया उसने,

कभी दुरिया बना के जादू ए तिर चलाया उसने!

कभी सवाल कर के हजार गुमसुम बनाया उसने,

कभी ग़म ए अश्क़ जाम ए जहर पिलाया उसने!

कभी वह ठहर गया झ़ील जैसा नदियाँ बन कर,

प्यास बढ़ा कर मुझको प्यासा बनाया उसने!
झ़ील

चिराग़ ए दिल

जला दिया हैं आज चिराग़ ए दिल किसी ने,

तनहाईयों में बिताया है साथ ए हर पल किसी ने!

रात भर जागते रहतें थें सोचते सोचते हम,

अंजुमन ए ख़यालों से निकाला ए हल किसी ने!

बात करने की इजाज़त नहीं थी हमें मगर,

हाथ बढ़ा के कर दी हैं दोस्ती की पहल किसी ने!

कोई आया तो नहीं फिर भी क्यूँ लगा मुझे,

घर का दरवाज़ा खोल दिया हैं आज कल किसी ने!

बडी मुश्किल से दिल बच्चों सा रखा है झ़ील,

मेरे दिल पे दे दिया है जख़्म मुस्सलसल् किसी ने!

झ़ील

मुस्सलसल् = बार बार

माँ

मेरी ऊँगलियाँ पकड़ कर मुझे फ़िर चलना सीखा दे,

छुपा लेना आँचल में पहलें फ़िर सँभलना सीखा दे!

ग़म ही ग़म है शहर में हाथों में तेरी फ़िर भी नमीं है,

चला लेना लाठियाँ जितनी फ़िर मुस्कुराना सीखा दे!

तेरे हाथों की वह रोटीयाँ अब तक जुबांन पे हैं मेरी,

छुपा देना आचार कहीं फ़िर नज़र मिलाना सीखा दे!

हमने हर कदम ज़माने को आपस में लड़ते देखा है,

दरवाजे पे सुना देना सब कुछ फ़िर ठ़हरना सीखा दे!

रोने दो मुझे अब की बार आँसु ओं को भी बहने दो,

जीत जाऊँ मैं दुनिया अगर तो फ़िर बुलाना सीखा दे!
झ़ील

गीत ( दर्द़ )

हर तरफ़ हैं ग़म हवायें है थोडी सी क़म,

कोई हैं नाराज़ यहाँ आँख़ें रहतीं हैं नम़!

वह सुराग़ मिला न सुर्ख़ के तोड़ दे दम!

कोई बताये हाथों में हाथकड़ीयाँ किस तरह पहना दूँ,

दूर हैं उनकों याद किजिए दिल में कैसे बसाते हैं हम!

मेरे हाथों से टूट कर बिखर गई काँच की यह चूडियाँ,

दिल यह धड़कता रहा रात दिन तेरी आहट में सनम!

अब मैं किस तरह चुराऊँ उनके पलकों की सियाही,

देख कर न आया मोती उनकों नज़र बेहया हैं जन्म!

झ़ील

बारिश़

कहीं बारिश़ ने लपेटा इसी लिए चेहरा खिला तो नहीं,

कहीं आईना भी देख कर धुवाँ तुझ पर जला तो नहीं!

चाँद की रोशनी बढ़ा कर सितारों को मिलाया तो नहीं,

कहीं आफ़ताब देख कर आँखों से परदा गिरा तो नहीं!

क्या इंतज़ार ए ख़ुदा कोई नया क़लाम लाया तो नहीं,

कहीं छुप छुप कर कोरे कागज़ पे नाम लिखा तो नहीं

आपने भी बहायें होंगे कभी ग़म कभी खुशी के आँसू,

जो खोया हुआ था मोती समंदरसे फिर मिला तो नहीं!

हर किसी को थोड़े आते हैं आते जाते मिर ए ख़याल,

झील ने बनाई बिना पूछे ए ग़ज़ल कहीं गिला तो नहीं!

झ़ील

बहते हुए पानी में

बारिश़ के बहते हुए पानी में कैसे कैसे अरमान निकले,

कभी हार गयें कभी जीत गयें फिर कैसे अन्जान निकले!

कहानियाँ हमने भी सुनी सुनाई जो पुरखों से सुनी थी,

दिल धड़का था जब सामने फिर कैसे बेजुबान निकले!

मालूम था उनकों यह हम भी उनसे मोहब्बत करतें हैं,

आँसू लिये आँचल में अकेले फिर कैसे बेईमान निकले!

हमने ख़यालों को अपनी कभी माँ से भी छुपाया नहीं,

हमने तो सजाये थे नींद में भी फिर कैसे शैतान निकले!

बच्चों की जुबान पर हर क़सम ख़ुदा बन कर रहतीं हैं,

था वह मेरा ही अगर ख़ुदा तो फिर कैसे नादान निकले!

कहा मुझको मिल कर लोगों ने सब से अच्छा है क़रम,

जिसने देखा नहीं मुड़ कर फिर कैसे गुणवान निकले!

दैर ओ हरम में रहना झ़ील ने भी सीख लिया है मगर,

जिसनें पूछा न हाल ए दिल फिर कैसे कद़रदान निकले!

झ़ील

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