My new hindi poetry book published by madhushala publication plz give blessings and best wishes 🙏 hearty thanks all of you , stay blessed 🙌 God bless you
कदर
कदर करना भी किसी कि बहोत बडी जिम्मेदारी है,
वह निभाए तो एहसाँ तुम निभाओ तो दुनियादारी है!
भूल वह जायें अगर तो उनको कोई ऐतराज़ नही है,
तुम जरा ठ़हर जाओ अगर तो बहोत बडी बेईमानी है!
वह कहे अगर तो उनका हर लफ्ज़ सर आँखो पर,
तुम सुनाओ कुछ भी अगर तो बात बडी आसमानी है!
वह दिखाए राह जो भी सारी सही सलामत होती है,
तुम चले हो जिस मोड़ से वह बहोत ही अनजानी है!
उनका सजना सँवरना तो चाँद से भी बेहतर होता है,
तुम लिखो चाहे ग़ज़ल ए दिल से किसी की जुबानी है!
क्यों चले हो झील तुम भी ना अपनी वफ़ा निभाने,
खुबसूरत दुनियाभर मे जिसकी निगाहें मसतानी है!
Author of the week on story mirror
ख़त
मालिक देना सर पे बोझ उतना के मैं सह सकूँ,
चलती हुई इस दुनिया में पानी की तरह बह सकूँ!
देना दुवाएँ मुझे की मेरा यहाँ कोई हमदर्द़ ना हो,
बात जो चुभती है दिल में हर किसी को कह सकूँ!
सांस लेने की हो जगह और मेरे पैरों तक चादर,
धूप और बारिश से बचते बचते चैन से रह सकूँ!
ग़ज़ल: क़म ही लगता है!
क़म ही लगता है जो भी मिला हर किसी को तक़दीर में,
पास जिनके है सब उनको भी ले चला खुदा आखिर में!
ग़म ए जिंदगी का पिना होगा जिनको मिला ए नसीब से,
क्या फ़र्क है जो छिन कर लेता है तुझमें और क़ातिल में!
दम धरना सीख लो यहाँ पर यह जरा सी तो जिंदगी है,
क्या फ़र्क तु ना ठहरा अगर तो तुझमे और मुसाफ़िर में!
सच की बात करें अगर तो हर जगह झूठ ही चलता है,
क्या फ़र्क जो मीठा हासिल करें तुझमें और आस्तिन में!
बदनाम वही तो रहते हैं जिनका वजूद बिकता ही नहीं,
यह खेल है धूप छाँव का है क्यों हारने चला है कुस्ती में!
क़म ही लगता है जो भी मिला हर किसी को तक़दीर में,
पास जिनके है सब उनको भी ले चला खुदा आखिर में!
मेरे हाथों में कुछ भी नहीं!!💔
मेरे हाथों मे कुछ भी नहीं है इन लकीरों के सिवा,
भुला सके तो भुला दो तुम ही मुझको,
मेरी जिंदगी में कुछ भी नहीं है तनहाइयों के सिवा!
तुझको भी है यकीनन भरोसा मगर फ़िर भी,
मिलेगा कुछ भी नहीं पाकर मुझको,
मेरे घर कुछ भी नहीं है सिर्फ दीवारों के सिवा!
किया है बंद इस झील की आँखों में तुझको,
गिरा सकें तो गिरा दो नज़र से अपनी,
मेरी जज़्बात में कुछ भी नहीं है सितारों के सिवा!
अगर मिलना है तो मिल जायेंगे अगले जनम में,
मिटा सके तो मिटा दो मुझको तुम,
मेरे होठों पर कुछ भी नहीं है दुवा ओं के सिवा!
ख़्वाब देखे हैं बहोत देखीं है दुनिया सारी हमने,
छुपा सकें तो छुपा लो दामन अपना,
भरे हुए बाज़ार में कुछ भी नहीं ग़ैरों के सिवा!
हमने माना है कि मोहब्बत ए ग़ुनाह किया है मैंने,
जला सकें तो जला दो ख़त वह सारे,
मेरे दिल में कुछ भी नहीं है चिराग़ों के सिवा!
हर तरफ़ धूप ही धूप है खेल सिर्फ़ छाँव का है,
निकल सकें तो निकल जाओ घर अपने,
मेरे इस शहर में कुछ भी नहीं है मीनारों के सिवा!
सितमगर
देख कर किसी ने मुस्कुराना छोड़ दिया,
सितारों में हमने घर बसाना छोड़ दिया!
मोहब्बत में शिकवा होता नहीं करतें हैं,
इश्क़ ए अदा ही आजमाना छोड़ दिया!
कहने को होते हैं सारे रिश्ते नाते दोस्तों,
अपनों ने भी हाथ मिलाना छोड़ दिया!
देखीं हैं हमने तो ऐ ख़ुदा तेरी हर ख़ुदाई,
इसी वजहसे ही सर झुकाना छोड़ दिया!
पास आके पूछते हैं क्या हुआ ऐ दोस्त,
हमने चाँद से आँख मिलाना छोड़ दिया!
इन्सान को अपनों ने आवारा कह दिया,
अपने चौखट पे आना जाना छोड़ दिया!
हर शाम ज़ख्म बिलग के रोते हैं रात भर,
झ़ील की क़िताब गले लगाना छोड़ दिया!
ज़प्त ए दिल
ज़प्त ए दिल किया हैं उसी ने जज्बात में आकर,
सितारों अब तो लौटा दो चाँद हाथों में आकर!
मेरी मर्जी के बिना ही जाने उसने क्या क्या लूटा,
हम मना भी न कर सकें उनकी बातों में आकर!
ऐ हवाओं न चलों ऐसा के ख़ुशबू में बहक जायें,
मेरे हाथों को वह छू कर गया है रातों में आकर!
हर एक पल हैं उनका ही कोई दूसरा क्या जाने,
जला दिया है चिराग़ ए दिल ख़ाक में आकर!
दिल कहीं और होश़ कहीं अब खो गया दोस्तों,
झ़ील बताओ कैसे बिताऊँ घडियाँ साथ में आकर!
“Hello Everyone!
This book has been shortlisted for Wattpad India Awards 2019.
If you like it and would want this book to win “Popular Choice Award” in ( Poetry Hindi *),
Please vote on this chapter.
Thank you!”
अक़्स
http://www.wattpad.com Profile name: jheel_poet
हमनें ऐ जिंदगी
हमनें जिंदगी तेरा ख़ुद से बेहतर ख़याल किया,
टूट कर हम बिख़र गयें और तुमने बवाल किया!
रुख़ हवा का छोड़ कर हम मुड़ गयें तेरी तरफ़,
हार गये हम चलते चलते रास्तों ने कमाल किया!
जाने अन्जाने से हैं पहलु फैले हुए हर तरफ़,
तेरी चाहत में गुम हुये और तुमने सवाल किया!
जितने का था शौक़ तो हम ख़ुद ही हार जाते,
जाने कितने दिलों में तुने बताओं अव्वल किया!
तुम सज गयीं हो कितनी देखूँ मैं जाने किधर,
उम्र कैद़ बाहों में तेरी तुने किस के हवाले किया!
arushi_india
मुझे मंजिल तो आतीं हैं नज़र मगर चलूँ तो भी कैसे,
ख़्वाहिश है जिसे पाने की हासिल करूँ तो भी कैसे!
झाँककर खिड़कीसे हर वक्त़ हर फूल देखता है मुझे,
बड़ा हूँ फ़िर भी बच्चा हूँ मैं बहक जाऊँ तो भी कैसे!
घर का हर आदमी सुबह मुस्कुराता हुआ निकलता है,
रूह से ही पूछों शाम तक दिन गुज़ारता हूँ तो भी कैसे!
इन दीवारों को हमनें ही फिज़ा ओं में तब्दील किया है,
बंद हवा में पंछियों के साथ उड़ान भर लूँ तो भी कैसे!
बरसना है मुझे भी ऊँचाईयोंसे बादलों की तरह मगर,
अपनों के हाथों से अब मैं छुटकारा पाऊँ तो भी कैसे!
तमन्ना है यह मेरी कोई यहाँ से उस झ़ील तक ले चलें,
होतीं हैं पूरी सिक्कों से मैं ख़ुदा से पुछ लूँ तो भी कैसे!